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चंदेल वंश

चंदेल वंश

  1. प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुंदेलखंड की भूमि पर चंदेल वंश का स्वतंत्र राजनीतिक इतिहास प्रारंभ हुआ।
  2. बुंदेलखंड का प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है।
  3. चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक था।(831ई०)
  4. इसकी राजधानी खजुराहो थी प्रारंभ में इसकी राजधानी (कलिंजर) महोबा थी।
  5. चंदेल वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन था।
  6. यशोवर्मन ने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देवपाल को हराया तथा उससे एक विष्णु की प्रतिमा प्राप्त कि, जिससे उसने खजुराहो के विष्णु मंदिर में स्थापित की।
  7. धंग ने जिन्नात विश्वनाथ एवं वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
  8. चंदेल शासक विद्याधर ने कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या कर दी क्योंकि उसने महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण का सामना किए बिना ही आत्मसमर्पण कर दिया था।
  9. विद्याधर ही अकेला ऐसा भारतीय नरेश था जिसने महमूद गजनी की महत्वकांक्षाओं का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।
  10. चंदेल शासक कीर्ति वर्मन की राज्यसभा में रहने वाले कृष्ण मिश्र ने प्रबोध चंद्रोदय की रचना की थी।
  11. कीर्ति वर्मन ने महोबा के समीप कीर्ति सागर नामक जलाशय का निर्माण किया।
  12. आल्हा- उदल नामक दो सेनानायक परमवर्दिदेव के दरबार में रहते थे जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध करते हुए अपनी जान गंवाई थी।
  13. चंदेल वंश का अंतिम शासक परमवर्दिदेव ने 1202 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली । इस पर उसके मंत्री अजय देव ने उसकी हत्या कर दी।

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कश्मीर के राजवंश

कश्मीर के राजवंश कश्मीर पर शासन करने वाले शासक वंश काल क्रम में इस प्रकार थे- कार्कोट वंश>उत्पल वंश>लोहार वंश। सातवीं शताब्दी में दुर्लभ वर्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी। प्रतापपुर नगर की स्थापना दुर्लभक ने की थी। कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली राजा ललितादत्य मुक्तापीड था। कश्मीर का मार्तंड मंदिर का निर्माण ललितादित्य के द्वारा करवाया गया था। कार्कोट वंश के बाद कश्मीर पर उत्पल वंश का शासन हुआ इस वंश का संस्थापक अवंति वर्मन था। अवंतीपुर नामक नगर की स्थापना अवंति वर्मन ने की थी। उत्पल वंश के बाद कश्मीर पर लोहार वंश का शासन हुआ। लोहार वंश का संस्थापक संग्राम राज था। लोहार वंश का शासक हर्ष- विद्वान, कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था। कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था। जयसिंह, लोहार वंश का अंतिम शासक था जिसने 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी तक शासन किया। जय सिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है। राजतरंगिणी - भारत की पहली इतिहास की पुस्तक है।

धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यता 4 स्रोतों से प्राप्त होती है- 1. धर्म ग्रंथ 2.  ऐतिहासिक ग्रंथ 3. विदेशियों का विवरण 4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां- भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण  द्वैपायन वेदव्यास है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है। ऋग्वेद में मंडलों की संख्या 10 है देवता सोम का उल्लेख ऋग्वेद के 9 वें मंडल में है। ऋग्वेद में शुक्र एवं श्लोकों की संख्या क्रमशा 1028 एवं 10462 है। वेद के श्लोकों को रचनाएं कहा जाता है। गद्य एवं पद्य वाला वेद यजुर्वेद है। भारतीय संगीत का जनक सामवेद। रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि आदि विविध विषयों से संबंधित वेद है- अथर्ववेद। भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा विवरण मिलता है- पुराणों में। पुराणों की संख्या 18 है। सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित पुराण है- मत्स्यपुराण। मौर्य वंश से संबंधित पुराण है- विष्ण...

विदेशी यात्रियों से मिलने वाली प्रमुख जानकारी

क) यूनानी- रोमन लेखक टेसियस- यह ईरान का राजवैध था। हेरोडोटस- इसे इतिहास का पिता कहा जाता है। इस ने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। सिकंदर के साथ आने वाले लेखक- आनेसिक्रटस, निर्याकस, तथा आसि्टोबुलस। मेगास्थनीज- यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चंद्रगुप्त मौर्य के राज दरबार में आया था। इस ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है। डायमेकस- यह सीरियन नरेश आंटियोकस का का राजदूत था, जो बिंदुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है। डायोनिसियस- यह मिश्र नरेश टालिमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राज दरबार में आया था। टालमी- इसमें दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी। प्लिनी- किसने प्रथम शताब्दी में 'नेचुरल हिस्ट्री' नामक पुस्तक लिखी। ख) चीनी लेखक फाहियान-  यह चंद्रगुप्तत द्वितीय केे दरबार मैं आया था। संयुगन- इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित किया। हुएनसांग- या हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था। ...