मगध राज्य का उत्कर्ष
सोलह महाजनपदों में मुख्य प्रतिद्वन्दिता मगध और अवन्ति के बीच में थी इनमें भी अन्तिम विजय मगध को मिली। क्योंकि उसके पास अनेक योग्य शासक (बिम्बिसार, अजातशत्रु आदि) थे। लोहे की खान भी मगध में थी हलाँकि अवन्ति के पास भी लोहे के भण्डार थे। मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगिरि या गिरिब्रज पाँच तरफ पहाडि़यों से घिरी थी बाद की राजधानी पाटिलपुत्र, गंगा, सोन एवं सरयू के तट पर स्थित थी इन सब कारणो से अन्ततः विजय मगध को मिली। मगध साम्राज्य का दो महान काव्य रामायण और महाभारत में उल्लेख किया गया है |
मगध साम्राज्य का वंश
बृहद्रथ वंश
हर्यक वंश (544 ई.पू. से 412 ई.पू.)
अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
उदयिन (460ई.पू. से 444 ई.पू.)
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
कालाशोक (395-366 ई.पू.)
नंद वंश (344 ई.पू. से 322 ई. पू.)
सोलह महाजनपदों में मुख्य प्रतिद्वन्दिता मगध और अवन्ति के बीच में थी इनमें भी अन्तिम विजय मगध को मिली। क्योंकि उसके पास अनेक योग्य शासक (बिम्बिसार, अजातशत्रु आदि) थे। लोहे की खान भी मगध में थी हलाँकि अवन्ति के पास भी लोहे के भण्डार थे। मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगिरि या गिरिब्रज पाँच तरफ पहाडि़यों से घिरी थी बाद की राजधानी पाटिलपुत्र, गंगा, सोन एवं सरयू के तट पर स्थित थी इन सब कारणो से अन्ततः विजय मगध को मिली। मगध साम्राज्य का दो महान काव्य रामायण और महाभारत में उल्लेख किया गया है |
मगध साम्राज्य का वंश
बृहद्रथ वंश
- मगध साम्राज्य के उत्थान में सर्वप्रथम बृहद्रथ वंश का नाम आता है।
- चेदि के राजा वसु के पुत्र बृहद्रथ ने प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम मगध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और बृहद्रथ वंश की नींव डाली।
- बृहद्रथ महाभारतकालीन कृष्ण का घोर शत्रु था। मगध का उत्थान इसी के शासनकाल से माना जाता है।
- बृहद्रथ का पुत्र जरासंध भी मगध का प्रतापी राजा था जो मल्लयुद्ध में भीम द्वारा मारा गया।
- इस वंश का अंतिम शासक रिपुंजय अथवा निपुंजय था, इसकी हत्या उसके मंत्री पुलिक ने कर दी।
हर्यक वंश (544 ई.पू. से 412 ई.पू.)
- भट्टिय नामक एक सामंत ने पुलिक के पुत्र की हत्या करवाकर अपने पुत्र बिंबिसार को मगध का शासक बनाया।
- हर्यक वंश के शासक बिंबिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बना कर मगध साम्राज्य की स्थापना की।
- बिम्बिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
- बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी राजनीतिक सुदृढ़ की और इसे अपनी समाजवादी महत्वाकांक्षा का आधार बनाया।
- बिंबिसार ने कौशल जनपद की राजकुमारी कौशल देवी कथा लिच्छवी की राजकुमारी चेल्लन से विवाह किया।
- बिंबिसार ने अंग राज्य पर अधिपत्य स्थापित करके उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- बिंबिसार गौतम बुद्ध का समकालीन था। इसे ‘श्रेणिक’ नाम से भी जाना जाता है।
- बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को, अवंती नरेश चंद्रघ्रोत की चिकित्सा के लिए भेजा।
- 15 वर्ष की आयु मेँ मगध साम्राज्य शासन की बागडोर संभालने वाला बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया।
अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
- बिंबिसार की हत्या करने के उपरांत का पुत्र अजातशत्रु मगध का शासक बना। इसे ‘कुणिक’ कहा जाता है।
- अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। उसने काशी तथा वाशि संघ को एक लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- बिच्छदियों के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने युद्ध में ‘इव्यमूसल’ तथा ‘महाशिलाकंटक’ शासक नए हथियारोँ का प्रयोग किया।
- प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगीर के सप्तपर्णी गुफा मेँ आजादशत्रु के शासन काल मेँ हुआ।
- अजातशत्रु ने पुराणोँ के अनुसार 20 वर्ष तथा बौद्ध साहित्य के अनुसार 32 वर्ष तक शासन किया।
उदयिन (460ई.पू. से 444 ई.पू.)
- अजातशत्रु की हत्या करके उसका पुत्र उदयिन मगध साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ।
- उदयिन ने गंगा नदी के संगम स्थल पर ‘कुसुमपुरा’ की स्थापना की जो बाद मेँ पाटलिपुत्र के रुप मेँ विख्यात हुआ।
- उदयिन या उदय भद्र जैन धर्मावलंबी था।
- उदयिन के बाद मगध सिंहासन पर बैठने वाले हर्यक वंश के शासक अनिरुद्ध, मुगल और दर्शक थे।
- हर्यक वंश का अंतिम शासक ‘नागदशक’ था। जिसे ‘दर्शक’ भी कहा जाता है।
शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
- हर्यक वंश के शासकोँ के बाद मगध पर पर शिशुनाग वंश का शासन स्थापित हुआ।
- शिशुनाग नमक एक अमात्य हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक को पदच्युत करके मगध की गद्दी पर बैठा और शिशुनाग नामक नए वंश की नींव डाली।
- शिशुनाग ने अवन्ति तथा राज्य पर अधिकार कर के उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- शिशुनाग ने वज्जियों को नियंत्रित करने के लिए वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- शिशुनाग ने 412 से 300 ई. पू. तक शासन किया।
कालाशोक (395-366 ई.पू.)
- कालाशोक के शासन काल की राजनीतिक उपलब्धियोँ के बारे मेँ कोई स्पष्ट जानकारी नहीँ मिलती है।
- कालाशोक को पुराणोँ और बौद्ध ग्रंथ दिव्यादान मेँ कालवर्प कहा गया है।
- गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के के लगभग 100 वर्ष बाद कालाशोक के शासन काल के 10वें वर्ष मेँ वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
नंद वंश (344 ई.पू. से 322 ई. पू.)
- नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था।
- पुराणों के अनुसार इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद एक शुद्र शासक था। उसने ‘सर्वअभावक’ की उपाधि धारण की।
- महापद्मनंद कलिंग के कुछ लोगोँ पर अधिकार कर लिया था। वहाँ उसने एक नहर का निर्माण कराया।
- महापद्मनंद ने कलिंग के गिनसेन की प्रतिमा उठा ली थी। उसने एकराढ़ की उपाधि धारण की।
- नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था।
- घनानंद के शासन काल मेँ 325 ईसा पूर्व मेँ सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था।
- घनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की नींव डाली।