Skip to main content

मगध राज्य का उत्कर्ष

मगध राज्य का उत्कर्ष

 सोलह महाजनपदों में मुख्य प्रतिद्वन्दिता मगध और अवन्ति के बीच में थी इनमें भी अन्तिम विजय मगध को मिली। क्योंकि उसके पास अनेक योग्य शासक (बिम्बिसार, अजातशत्रु आदि) थे। लोहे की खान भी मगध में थी हलाँकि अवन्ति के पास भी लोहे के भण्डार थे। मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगिरि या गिरिब्रज पाँच तरफ पहाडि़यों से घिरी थी बाद की राजधानी पाटिलपुत्र, गंगा, सोन एवं सरयू के तट पर स्थित थी इन सब कारणो से अन्ततः विजय मगध को मिली। मगध साम्राज्य का दो महान काव्य रामायण और महाभारत में उल्लेख किया गया है |


मगध साम्राज्य का वंश

बृहद्रथ वंश

  1. मगध साम्राज्य के उत्थान में सर्वप्रथम बृहद्रथ वंश का नाम आता है।
  2. चेदि के राजा वसु के पुत्र बृहद्रथ ने प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम मगध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और बृहद्रथ वंश की नींव डाली।
  3. बृहद्रथ महाभारतकालीन कृष्ण का घोर शत्रु था। मगध का उत्थान इसी के शासनकाल से माना जाता है।
  4. बृहद्रथ का पुत्र जरासंध भी मगध का प्रतापी राजा था जो मल्लयुद्ध में भीम द्वारा मारा गया।
  5. इस वंश का अंतिम शासक रिपुंजय अथवा निपुंजय था, इसकी हत्या उसके मंत्री पुलिक ने कर दी।


हर्यक वंश (544 ई.पू. से 412 ई.पू.)

  1. भट्टिय नामक एक सामंत ने पुलिक के पुत्र की हत्या करवाकर अपने पुत्र बिंबिसार को मगध का शासक बनाया।
  2. हर्यक वंश के शासक बिंबिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बना कर मगध साम्राज्य की स्थापना की।
  3. बिम्बिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
  4. बिम्बिसार ने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी राजनीतिक सुदृढ़ की और इसे अपनी समाजवादी महत्वाकांक्षा का आधार बनाया।
  5. बिंबिसार ने कौशल जनपद की राजकुमारी कौशल देवी कथा लिच्छवी की राजकुमारी चेल्लन से विवाह किया।
  6. बिंबिसार ने अंग राज्य पर अधिपत्य स्थापित करके उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
  7. बिंबिसार गौतम बुद्ध का समकालीन था। इसे ‘श्रेणिक’ नाम से भी जाना जाता है।
  8. बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को, अवंती नरेश चंद्रघ्रोत की चिकित्सा के लिए भेजा।
  9. 15 वर्ष की आयु मेँ मगध साम्राज्य शासन की बागडोर संभालने वाला बिम्बिसार ने 52 वर्षों तक शासन किया।


    अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)

  1. बिंबिसार की हत्या करने के उपरांत का पुत्र अजातशत्रु मगध का शासक बना। इसे ‘कुणिक’ कहा जाता है।
  2. अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। उसने काशी तथा वाशि संघ को एक लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
  3. बिच्छदियों के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने युद्ध में ‘इव्यमूसल’ तथा ‘महाशिलाकंटक’ शासक नए हथियारोँ का प्रयोग किया।
  4. प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगीर के सप्तपर्णी गुफा मेँ आजादशत्रु के शासन काल मेँ हुआ।
  5. अजातशत्रु ने पुराणोँ के अनुसार 20 वर्ष तथा बौद्ध साहित्य के अनुसार 32 वर्ष तक शासन किया।

 

    उदयिन (460ई.पू. से 444 ई.पू.)

  1. अजातशत्रु की हत्या करके उसका पुत्र उदयिन मगध साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ।
  2. उदयिन ने गंगा नदी के संगम स्थल पर ‘कुसुमपुरा’ की स्थापना की जो बाद मेँ पाटलिपुत्र के रुप मेँ विख्यात हुआ।
  3. उदयिन या उदय भद्र जैन धर्मावलंबी था।
  4. उदयिन के बाद मगध सिंहासन पर बैठने वाले हर्यक वंश के शासक अनिरुद्ध, मुगल और दर्शक थे।
  5. हर्यक वंश का अंतिम शासक ‘नागदशक’ था। जिसे ‘दर्शक’ भी कहा जाता है।

 

शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)

  1. हर्यक वंश के शासकोँ के बाद मगध पर पर शिशुनाग वंश का शासन स्थापित हुआ।
  2. शिशुनाग नमक एक अमात्य हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक को पदच्युत करके मगध की गद्दी पर बैठा और शिशुनाग नामक नए वंश की नींव डाली।
  3. शिशुनाग ने अवन्ति तथा राज्य पर अधिकार कर के उसे मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
  4. शिशुनाग ने वज्जियों को नियंत्रित करने के लिए वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
  5. शिशुनाग ने 412 से 300 ई. पू. तक शासन किया।

    कालाशोक (395-366 ई.पू.)

  1. कालाशोक के शासन काल की राजनीतिक उपलब्धियोँ के बारे मेँ कोई स्पष्ट जानकारी नहीँ मिलती है।
  2. कालाशोक को पुराणोँ और बौद्ध ग्रंथ दिव्यादान मेँ कालवर्प कहा गया है।
  3. गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के के लगभग 100 वर्ष बाद कालाशोक के शासन काल के 10वें वर्ष मेँ वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति  का आयोजन हुआ था।



नंद वंश (344 ई.पू. से 322 ई. पू.)

  1. नंद वंश का संस्थापक महापद्मनंद था।
  2. पुराणों के अनुसार इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद एक शुद्र शासक था। उसने ‘सर्वअभावक’ की उपाधि धारण की।
  3. महापद्मनंद कलिंग के कुछ लोगोँ पर अधिकार कर लिया था। वहाँ उसने एक नहर का निर्माण कराया।
  4. महापद्मनंद ने कलिंग के गिनसेन की प्रतिमा उठा ली थी। उसने एकराढ़ की उपाधि धारण की।
  5. नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था।
  6. घनानंद के शासन काल मेँ 325 ईसा पूर्व मेँ सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था।
  7. घनानंद को पराजित कर चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की नींव डाली।

Popular posts from this blog

धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यता 4 स्रोतों से प्राप्त होती है- 1. धर्म ग्रंथ 2.  ऐतिहासिक ग्रंथ 3. विदेशियों का विवरण 4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां- भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण  द्वैपायन वेदव्यास है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है। ऋग्वेद में मंडलों की संख्या 10 है देवता सोम का उल्लेख ऋग्वेद के 9 वें मंडल में है। ऋग्वेद में शुक्र एवं श्लोकों की संख्या क्रमशा 1028 एवं 10462 है। वेद के श्लोकों को रचनाएं कहा जाता है। गद्य एवं पद्य वाला वेद यजुर्वेद है। भारतीय संगीत का जनक सामवेद। रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि आदि विविध विषयों से संबंधित वेद है- अथर्ववेद। भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा विवरण मिलता है- पुराणों में। पुराणों की संख्या 18 है। सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित पुराण है- मत्स्यपुराण। मौर्य वंश से संबंधित पुराण है- विष्ण...

कश्मीर के राजवंश

कश्मीर के राजवंश कश्मीर पर शासन करने वाले शासक वंश काल क्रम में इस प्रकार थे- कार्कोट वंश>उत्पल वंश>लोहार वंश। सातवीं शताब्दी में दुर्लभ वर्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी। प्रतापपुर नगर की स्थापना दुर्लभक ने की थी। कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली राजा ललितादत्य मुक्तापीड था। कश्मीर का मार्तंड मंदिर का निर्माण ललितादित्य के द्वारा करवाया गया था। कार्कोट वंश के बाद कश्मीर पर उत्पल वंश का शासन हुआ इस वंश का संस्थापक अवंति वर्मन था। अवंतीपुर नामक नगर की स्थापना अवंति वर्मन ने की थी। उत्पल वंश के बाद कश्मीर पर लोहार वंश का शासन हुआ। लोहार वंश का संस्थापक संग्राम राज था। लोहार वंश का शासक हर्ष- विद्वान, कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था। कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था। जयसिंह, लोहार वंश का अंतिम शासक था जिसने 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी तक शासन किया। जय सिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है। राजतरंगिणी - भारत की पहली इतिहास की पुस्तक है।

विदेशी यात्रियों से मिलने वाली प्रमुख जानकारी

क) यूनानी- रोमन लेखक टेसियस- यह ईरान का राजवैध था। हेरोडोटस- इसे इतिहास का पिता कहा जाता है। इस ने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। सिकंदर के साथ आने वाले लेखक- आनेसिक्रटस, निर्याकस, तथा आसि्टोबुलस। मेगास्थनीज- यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चंद्रगुप्त मौर्य के राज दरबार में आया था। इस ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है। डायमेकस- यह सीरियन नरेश आंटियोकस का का राजदूत था, जो बिंदुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है। डायोनिसियस- यह मिश्र नरेश टालिमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राज दरबार में आया था। टालमी- इसमें दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी। प्लिनी- किसने प्रथम शताब्दी में 'नेचुरल हिस्ट्री' नामक पुस्तक लिखी। ख) चीनी लेखक फाहियान-  यह चंद्रगुप्तत द्वितीय केे दरबार मैं आया था। संयुगन- इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित किया। हुएनसांग- या हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था। ...