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चोल वंश

चोल वंश

  1. 9 वी शताब्दी में चोल वंश पल्लवो के ध्वंसावशेषो पर स्थापित हुआ।
  2. चोल वंश के संस्थापक विजयालय (850 से 870 ई०) था।
  3. चोलो का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम स्थापित किया।
  4. पल्लवों पर विजय पाने के उपरांत आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की।
  5. राजराज प्रथम शैव धर्म का अनुयाई था।
  6. राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर का शिव मंदिर बनवाया जिसे बृहदेश्वर मंदिर से भी जाना जाता है।
  7. चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेंद्र प्रथम के शासनकाल में हुआ।
  8. चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र तृतीय था।
  9. विक्रम चोल, आभाव एवं अकाल से ग्रस्त गरीब जनता से राजस्व वसूल कर चिदंबरम् मंदिर का विस्तार करवा रहा था।
  10. कोलतुंग द्वितीय ने चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंद राज (विष्णु) की मूर्ति को समुद्र में फेकवा दिया। कालांतर में वैष्णो आचार्य  रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्ति का पुनद्धार किया और उसे तिरुपति के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया।
  11. संपूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में विभक्त था।  प्रांत को मंडलम कहा जाता था ।मंडलम को कोट्टम, कोटृम नाडु में एवं नाडु कई कुर्रमों में विभक्त था।
  12. स्थानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी।
  13. ब्राह्मणों को दी गई करमुक्त भूमि को चतुर्वेदी मंगलम कहते थे।
  14. तमिल कवियों में जयनगोंदर प्रसिद्ध कविता था,जो कुलोत्तुंग प्रथम का राजकवि था । उसकी रचना है कलिंगतुपणि।
  15. कंबन, औट्टक्कुटृन और पुंगलेदी को तमिल साहित्य का त्रिरत्न कहा जाता है।
  16. चोल काल 10वीं शताब्दी का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कावेरीपटनम था।
  17. शैव संत ईशानशिव पंडित राजेंद्र प्रथम के गुरु थे।

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धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां

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कश्मीर के राजवंश

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