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Showing posts from September, 2017

भारत का इतिहास

भारत का इतिहास पाषाण युग- 70000 से 3300 ई.पू मेहरगढ़ संस्कृति 7000-3300 ई.पू सिन्धु घाटी सभ्यता- 3300-1700 ई.पू हड़प्पा संस्कृति 1700-1300 ई.पू वैदिक काल- 1500–500 ई.पू प्राचीन भारत - 1200 ई.पू–240 ई. महाजनपद 700–300 ई.पू मगध साम्राज्य 545–320 ई.पू सातवाहन साम्राज्य 230 ई.पू-199 ई. मौर्य साम्राज्य 321–184 ई.पू शुंग साम्राज्य 184–123 ई.पू शक साम्राज्य 123 ई.पू–200 ई. कुषाण साम्राज्य 60–240 ई. पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई. चोल साम्राज्य 250 ई.पू- 1070 ई. गुप्त साम्राज्य 280–550 ई. पाल साम्राज्य 750–1174 ई. प्रतिहार साम्राज्य 830–963 ई. राजपूत काल 900–1162 ई. मध्यकालीन भारत-  500 ई.– 1761 ई. दिल्ली सल्तनत ग़ुलाम वंश ख़िलजी वंश तुग़लक़ वंश सैय्यद वंश लोदी वंश मुग़ल साम्राज्य 1206–1526 ई. 1206-1290 ई. 1290-1320 ई. 1320-1414 ई. 1414-1451 ई. 1451-1526 ई. 1526–1857 ई. दक्कन सल्तनत बहमनी वंश निज़ामशाही वंश 1490–1596 ई. 1358-1518 ई. 1490-1565 ई. दक्षिणी साम्राज्य राष्ट्रकूट वंश होयसल साम्राज्य ककातिया साम्राज्य विजयनगर स...

प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण उद्धत नहीं किया उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं मानव विकास के उस काल का इतिहास कहा जाता है जिसका विवरण लिखित रूप में उपलब्ध है। 'आद्य ऐतिहासिक काल' उस काल को कहते हैं जिस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं। ज्ञानी मानव (होमोसपियंस) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग 30 या 40000 वर्ष पूर्व हुआ। पूर्व पाषाण युग के मानव की जीवन का मुख्य आधार था- शिकार। कृषि का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ। भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था सिंधी भाषा में जिसका अर्थ है मृतकों का टीला।

पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारी

पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारी 1400 ई०पू० के अभिलेख 'बोगाजकोई' (एशिया माइनर) सिर्फ वैदिक देवता- मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य (अश्वनी कुमार) के नाम मिलते हैं। मध्य भारत में भागवत धर्म शिक्षित होने का प्रमाण भवन राजपूत 'होलियोडोरस' के वेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होता है। प्राचीनतम सिक्को को आहत सिक्के कहा जाता है इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है। सर्वप्रथम शिक्षकों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया। समुद्रगुप्त की वीणा बजाते हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीतप्रेमी होने का प्रमाण मिलता है। अरिकमेडु (पुदुच्चेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए।

धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यता 4 स्रोतों से प्राप्त होती है- 1. धर्म ग्रंथ 2.  ऐतिहासिक ग्रंथ 3. विदेशियों का विवरण 4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारियां- भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण  द्वैपायन वेदव्यास है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है। ऋग्वेद में मंडलों की संख्या 10 है देवता सोम का उल्लेख ऋग्वेद के 9 वें मंडल में है। ऋग्वेद में शुक्र एवं श्लोकों की संख्या क्रमशा 1028 एवं 10462 है। वेद के श्लोकों को रचनाएं कहा जाता है। गद्य एवं पद्य वाला वेद यजुर्वेद है। भारतीय संगीत का जनक सामवेद। रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि आदि विविध विषयों से संबंधित वेद है- अथर्ववेद। भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा विवरण मिलता है- पुराणों में। पुराणों की संख्या 18 है। सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित पुराण है- मत्स्यपुराण। मौर्य वंश से संबंधित पुराण है- विष्ण...

विदेशी यात्रियों से मिलने वाली प्रमुख जानकारी

क) यूनानी- रोमन लेखक टेसियस- यह ईरान का राजवैध था। हेरोडोटस- इसे इतिहास का पिता कहा जाता है। इस ने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। सिकंदर के साथ आने वाले लेखक- आनेसिक्रटस, निर्याकस, तथा आसि्टोबुलस। मेगास्थनीज- यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था, जो चंद्रगुप्त मौर्य के राज दरबार में आया था। इस ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है। डायमेकस- यह सीरियन नरेश आंटियोकस का का राजदूत था, जो बिंदुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है। डायोनिसियस- यह मिश्र नरेश टालिमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राज दरबार में आया था। टालमी- इसमें दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी। प्लिनी- किसने प्रथम शताब्दी में 'नेचुरल हिस्ट्री' नामक पुस्तक लिखी। ख) चीनी लेखक फाहियान-  यह चंद्रगुप्तत द्वितीय केे दरबार मैं आया था। संयुगन- इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित किया। हुएनसांग- या हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था। ...

वैदिक सभ्यता एवं सिंधु सभ्यता

वैदिक सभ्यता वैदिक काल का विभाजन दो भागों में किया जाता है-  ऋग्वैदिक काल जो कि 1500 से 1000 ईशा पूर्व और उत्तर वैदिक काल जो कि 1000 से 600 ईसा पूर्व में किया गया है। आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे। आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलायी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था यह वनस्पति से बनाया जाता था। आर्यों का समाज पितृ प्रधान था। ऋग्वेद में उल्लेखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी। उत्तर वैदिक काल में इंद्र के स्थान पर प्रजापति सार्वधिक प्रिय देवता हो गए थे। 'सत्यमेव जयते' मुंडकोपनिषद से लिया गया है। उपनिषद में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गई है। गायत्री मंत्र सविता नामक देवता को संबोधित है, जिसका संबंध ऋग्वेद से है। उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में प्रथम बार पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है। महाकाव्य दो है- महाभारत एवं रामायण। महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। सिंधु सभ्यता सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की। सिंधु स...

जैन धर्म

जैन धर्म जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थकर थे- ऋषभदेव। जैन धर्म के 23 वे तीर्थकर थे- पार्शवनाथ। पार्शवनाथ काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थकर हुए। महावीर का जन्म 540 ईसापूर्व में कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिया। महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जमील बने। महावीर ने अपने शिष्यों को एक 11 गणधरों में विभाजित किया था। पहली जनसभा पाटलिपुत्र में 322 ईसापूर्व में भद्रबाहु और संभूति विजय के नेतृत्व में हुई। इस सभा के बाद जैन धर्म में दो भागों विभाजित हो गया, श्वेताम्बर एवं दिगंबर। श्वेतांबर- जो सफेद कपड़े पहनते हैं एवं दिगंबर- जो एकदम नग्नावस्था में रहते हैं। जैन धर्म के त्रिरत्न है- सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक आचरण। खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया। मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था। जैन तीर्थ करो की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में वर्णित है। मथुरा कला...

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतमबुद्ध थे। इन्हें एशिया का ज्योति पुंज लाइट ऑफ एशिया कहा जाता है। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता शुद्धोधन शाक्य के गण के मुखिया थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध के नाम से जाना गया वह स्थान बोधगया कहलया। बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ (ऋषिपटनम) में दिया जिससे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा गया। बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पाली में दिए। इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे बिंबसार, प्रसेनजीत जाति तथा उदयन। बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनारा तात्कालिक देवरिया उत्तर प्रदेश में चुंद द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है। बौद्ध धर्म के बारे में हमें विशेष ज्ञान पाली त्रिपिटक से प्राप्त होता है। बौद्ध धर्म मूलतः अनीश्वरवादी है इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं है। प्रथम बौद्ध संगीति 483 ईसा पूर्व राज्यगृह में महा कश्यप की अध्यक्षता में अजातशत्रु के शासनकाल में हुआ था। द्वितीय...

शैव धर्म

शैव धर्म भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव एवं शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया है। शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है। ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है। एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटो ने करवाया था। चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया जिसे बृहदीश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुषाण शासको की मुद्राओं पर शिव एवं नंदी का एकसाथ अंकन प्राप्त होता है।

इस्लाम धर्म

इस्लाम धर्म इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद थे। हजरत मोहम्मद का जन्म 570 ई० में मक्का में हुआ था। हजरत मोहम्मद के पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था। हजरत मोहम्मद को मक्का के पास हीरा नामक गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुई। पैगंबर के मक्का से मदीना की यात्रा इस्लाम जगत में मुस्लिम संवत के नाम से जाना जाता है। हजरत मोहम्मद की मृत्यु 632 ई० को हुई इन्हें मदीना में दफनाया गया। मोहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम सुन्नी तथा शिया नामक दो पंथो में विभाजित हो गया। सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास करते हैं । सुन्ना पैगंबर मोहम्मद के कथनों तथा कार्यों का विवरण है। शिया अली की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं तथा उन्हें मोहम्मद का न्याय सम्मत उत्तराधिकारी मानते हैं अली, मोहम्मद के दामाद थे। पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकारी 'खलीफा' कहलाए। इस्लाम जगत में खलीफा पद 1924 ई० तक रहा 1924 ई० में उसे तुर्की के शासक मुस्तफा कमालपाशा ने समाप्त कर दिया। इब्ने इशाक में सर्वप्रथम पैगंबर साहब का जीवन चरित्र लिखा है। मोहम्मद पैगंबर के जन्मदिन पर ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर्व मना...

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म ईसाई धर्म के संस्थापक हैं - ईसा मसीह। ईसाई धर्म का प्रमुख ग्रंथ है - बाइबल। ईसा मसीह का जन्म जेरूसलम के निकट बेथलेहम नामक स्थान पर हुआ। ईसा मसीह के जन्म दिवस को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। ईशा ने अपने जीवन के प्रथम 30 वर्ष एक बढ़ई के रूप में बदले हम के निकट नाजरेथ में बिताएं। ईसा मसीह के प्रथम दो शिष्य थे एंडयूज़ एवं पीटर। ईसा मसीह को सूली पर रोमन गवर्नर पोंटियस ने चढ़ाया।

मगध राज्य का उत्कर्ष

मगध राज्य का उत्कर्ष  सोलह महाजनपदों में मुख्य प्रतिद्वन्दिता मगध और अवन्ति के बीच में थी इनमें भी अन्तिम विजय मगध को मिली। क्योंकि उसके पास अनेक योग्य शासक (बिम्बिसार, अजातशत्रु आदि) थे। लोहे की खान भी मगध में थी हलाँकि अवन्ति के पास भी लोहे के भण्डार थे। मगध की प्रारम्भिक राजधानी राजगिरि या गिरिब्रज पाँच तरफ पहाडि़यों से घिरी थी बाद की राजधानी पाटिलपुत्र, गंगा, सोन एवं सरयू के तट पर स्थित थी इन सब कारणो से अन्ततः विजय मगध को मिली। मगध साम्राज्य का दो महान काव्य रामायण और महाभारत में उल्लेख किया गया है | मगध साम्राज्य का वंश बृहद्रथ वंश मगध साम्राज्य के उत्थान में सर्वप्रथम बृहद्रथ वंश का नाम आता है। चेदि के राजा वसु के पुत्र बृहद्रथ ने प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम मगध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और बृहद्रथ वंश की नींव डाली। बृहद्रथ महाभारतकालीन कृष्ण का घोर शत्रु था। मगध का उत्थान इसी के शासनकाल से माना जाता है। बृहद्रथ का पुत्र जरासंध भी मगध का प्रतापी राजा था जो मल्लयुद्ध में भीम द्वारा मारा गया। इस वंश का अंतिम शासक रिपुंजय अथवा निपुंजय था, इसकी हत्या उसक...

विदेशी आक्रमण

विदेशी आक्रमण भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान के हखमनी वंश के शासकों ने किया था। हखमनी वंश का संस्थापक साइरस (559-529 ई-पू-) था। साइरस ने जैड्रोसिया के रेगिस्तानी मार्ग से होकर भारत पर आक्रमण करने का प्रयास किया जो असफल रहा। भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता साइरस के उत्तराधिकारी दारा प्रथम (दारायवहु) (522-486 ई-पू-) को प्राप्त हुई। दारा (डेरियस) ने 516 ई-पू- में पश्चिमोत्तर भारत के पंजाब, सिंधु नदी के तटवर्ती भूभाग एवं सिंध को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। डेरियस का उत्तराधिकारी क्षयार्ष (जरक्सीज) ने यूनानियों के विरुद्ध संघर्ष में भारतीयों को अपनी फौज में शामिल किया। ईरानियों ने भारत में खरोष्ठी लिपि को लेखन में प्रचलित किया। पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत से ईरानी सिक्के प्राप्त हुए हैं। ईरानियों ने आरमाइक लिपि का प्रचार-प्रसार किया। ईरानी आक्रमण के पश्चात् भारत को यूनानी आक्रमणकारी सिकन्दर का सामना करना पड़ा। सिकन्दर मेसीडोनिया (मकदूनिया) के क्षत्रप फिलिप द्वितीय का पुत्र था। सिकन्दर के गुरू का नाम अरस्तु था। 326 ई-पू- में सिकंदर ने अपना भारत विजय अभियान प्रारंभ किय...

मगध साम्राज्य के मौर्य, सुंग , कण्व, एवं सातवाहन वंश

मौर्य साम्राज्य   चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था। घनानंद को हराने में चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी जो बाद में चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री बना। चाणक्य द्वारा लिखित पुस्तक है अर्थशास्त्र जिसका संबंध राजनीति से है, चाणक्य को कौटिल्य तथा विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रगुप्त जैन धर्म का अनुयायी था। चंद्रगुप्त ने अपना अंतिम समय कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर बिताया। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर को हराया, जो कि सिकंदर का सेनापति था। मेगास्थनीज सलोकस निकेटर का राजदूत था जो चंद्रगुप्त के दरबार में रहता था। नंद वंश के विनाश करने में चंद्रगुप्त मौर्य ने कश्मीर के राजा पर्वतक से सहायता प्राप्त की थी।     बिंदुसार चंद्रगुप्त मौर्य का उत्तराधिकारी बिंदुसार हुआ जो 298 ईसवी पूर्व में मगध की राज गद्दी पर बैठा। अमित्रघात के नाम से बिंदुसार जाना जाता था जिसका अर्थ है शत्रु विनाशक। वायु पुराण में बिंदुसार को भद्रसार या वारिसार कहा गया है। बिंदुसार के शासन काल में तक्षशिला में हुए दो विद्रोहों का वर्णन है इस विद...

कुषाण वंश

कुषाण वंश पहल्व के बाद कुषाण आए, जो यूची एवं तोखरी भी कहलाते थे। कुषाण वंश का संस्थापक था- कुजूल कडफिसेस। कुषाण वंश का सबसे प्रतापी राजा था - कनिष्क । कनिष्क की राजधानी थी - पुरुषपुर या पेशावर। कुषाणों की दूसरी राजधानी थी - मथुरा। कनिष्क ने 78 ई० गद्दी पर बैठने के बाद एक संवत चलाया जो शक संवत कहलाता है और भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध संगीति कनिष्क के शासन काल में कुंडलवन जो कश्मीर में है, प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई थी। आरंभिक कुषाण शासको ने भारी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं मुद्राएं जारी की जिन की शुद्धता गुप्त काल की स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट है । कनिष्क का राजकवि अश्वघोष था। कनिष्क का राज वैद्य आयुर्वेद का विख्यात विद्वान चरक था जिसने चरक संहिता की रचना की। बुद्ध चरित्र, सौंदरानंद और सूत्र अलंकार अश्वघोष की प्रसिद्ध रचना है। बौद्ध का रामायण बुद्ध चरित्र को कहा जाता है। महाविभाष सूत्र के रचनाकार वसुमित्र है इसे ही बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है। अश्वघोष, वसुमित्र, पार्श्व, चरक, नागार्जुन, महाचेत और सं...

शक वंश

शक वंश यूनानियों के बाद शक आए। शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे। शकों की 5 शाखाएं थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी। पहली शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी शाखा ने पंजाब (राजधानी तक्षशिला ) , तीसरी शाखा ने मथुरा, चौथी शाखा ने पश्चिम भारत एवं पांचवी शाखा के उपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया। चारागाह की खोज में सब भारत आए। 58 ईसापूर्व में उज्जैन के विक्रमादित्य द्वितीय ने शकों को पराजित कर के बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में दक्षिण भारत में प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा ने सबसे लंबे अरसे तक शासन किया। शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था जिसका शासन गुजरात के बड़े भूभाग पर था। रुद्रदामन प्रथम ने काठियावाड़ की अर्धशुष्क सुदर्शन झील (मौर्य द्वारा निर्मित) का जीर्णोद्धार किया। भारत में शक राजा अपने को छत्रप कहते थे।

भारत के यवन राज्य

भारत के यवन राज्य (विदेशी राज्य) भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रमणकारीयों  का क्रम है-  हिंदयूनानी>शक >पहल्व >कुषाण । सेल्यूकस के द्वारा स्थापित पश्चिमी तथा मध्य एशिया की विशाल साम्राज्य को उसके उत्तराधिकारी एंटीओकस प्रथम ने अक्षुण्ण बनाए रखा। एंटीओकस द्वितीय के शासनकाल में विद्रोह के फलस्वरूप उसके अनेक प्रांत स्वतंत्र हो गए। भारत पर सबसे पहले आक्रमण बैक्ट्रिया के शासक डेमेट्रियस ने किया। इसमें 190 ईसापूर्व में भारत पर आक्रमण कर अफगानिस्तान, पंजाब एवं सिंध के बहुत बड़े भाग पर अधिकार कर लिया इसने शाकल को अपनी राजधानी बनाई इसे ही हिंद यूनानी या बैक्ट्रिया यूनानी कहा गया। हिंद यूनानी शासको में सबसे अधिक विख्यात मिनांडर हुआ। मिनांडर ने नागसेन (नागार्जुन) से बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। मिनांडर के प्रश्न एवं नागसेन द्वारा दिए गए उत्तर एक पुस्तक के रुप में संग्रहित है जिसका नाम मिलिंदपन्हो अर्थात मिलिंद के प्रश्न या मिलिंदप्रश्न है। भारत में सबसे पहले हिंदी यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए। हिंद-यूनानी शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में यूनान ...

पुष्यभूति वंश

पुष्यभूति वंश गुप्त वंश के पतन के बाद हरियाणा के अंबाला जिले के थानेश्वर नामक स्थान पर नरवध्र्दन द्वारा पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई। पुष्यभूति वंश का सबसे शक्तिशाली शासक प्रभाकर वर्धन था। प्रभाकर वर्धन ने अपनी पुत्री राजश्री का विवाह मौखरि वंश के शासक ग्रह वर्मन से किया। मालवा नरेश देवगुप्त एवं गौड़ शासक शशांक ने मिलकर ग्रह वर्मन की हत्या कर दी। प्रभाकर वर्मन के बाद राज्यवर्धन गद्दी पर बैठा जिसकी हत्या शशांक गौर शासक ने कर दी। राजवर्धन के बाद 606 ईस्वी में 16 वर्ष की अवस्था में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन की प्रथम राजधानी थानेश्वर कुरुक्षेत्र के निकट थी, बाद में उसने अपनी राजधानी क़न्नौज में स्थापित कर दिया। हर्षवर्धन के दरबार का प्रसिद्ध दरबारी कवि था - बाणभट्ट। हर्ष चरित का लेखक बाणभट्ट है। हर्षवर्धन शिव का उपासक था।  हर्षवर्धन की रचना है- नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका। चीनी यात्री हेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था। हर्षवर्धन को दक्षिण भारत के शासक पुलकेशिन द्वितीय (चालुक्य वंश) ने ताप्ती नदी के किनारे 630 ईस्वी में हराया। हर्ष शिलादित्य के ना...

गुप्त साम्राज्य

गुप्त साम्राज्य     श्रीगुप्त गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत में प्रयाग के निकट कौशांबी में हुआ। गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था। (240-320ई०) श्री गुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच (280 से 320 ई०) हुआ। गुप्त काल में उज्जैन सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। गुप्त राजाओं ने सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं जारी की इनकी स्वर्ण मुद्राओं का अभिलेखों में दिनार कहा गया है इसी कारण से गुप्त काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्त काल में ही हुआ।        चंद्रगुप्त प्रथम  गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम था, यह 320 ई० में गद्दी पर बैठा। इसने लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया । इसने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की। गुप्त संवत 319 से 320 ईसवी की शुरुआत चंद्रगुप्त प्रथम ने की। चंद्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ जो 335 ईसवी में राजगद्दी पर बैठा।       समुद्रगुप्त समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिसिंह था जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की है। समु...

पल्लव वंश

पल्लव वंश पल्लव वंश का संस्थापक सिंह विष्णु था (575-600ई०)। इसकी राजधानी कौन सी थी जो की तमिलनाडु में कांचीपुरम है। सिंह विष्णु वैष्णो  धर्म का अनुयायी था। किरातार्जुनीयम् के लेखक भारवी, श्रीविष्णु के दरबार में रहते थे। पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित (879 से 897 ई०) हुआ। मत्तविलास प्रहसन की रचना महेंद्रवर्मन ने की थी। महाबलीपुरम के एकाश्म मंदिर जिन्हे रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा कराया गया था। रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रौपदी रथ है, जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है। वातपीकोण्ड की उपाधि नरसिंह वर्मन प्रथम ने धारण की थी। कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण नरसिंहवर्मन द्वितीय ने कराया था। इसे राजसिद्धेश्वर मंदिर कहा जाता है। (महाबलीपुरम में शोर मंदिर) दशकुमार चरित्र के लेखक दण्डी, नरसिंहवर्मन द्वितीय के दरबार में रहते थे। कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण नंदी वर्मन द्वितीय ने कराया। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमडग़्ई अलवार, नंदी वर्मन द्वितीय के समकालीन थे।

राष्ट्रकूट

राष्ट्रकूट राष्ट्रकूट राजवंश के संस्थापक दंतिदुर्ग (762ई०) था। इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत वर्तमान (मालखेड़ी, सोलापुर) के निकट थी। एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था। ध्रुव, राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया। ध्रुव को 'धारावर्ष' भी कहा जाता था। अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयाई था इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की । आदिपुराण के रचनाकार जिनसेन, गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृत्ति के लेखक सक्तयना, अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे। इंद्र तृतीय के शासनकाल में अरब निवासी अलमसूदी भारत आया उसने तात्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा। राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण तृतीय था। इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे जिन्होंने शांति पुराण की रचना की। एलोरा एवं एलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुहा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय में ही हुआ।

चालुक्य वंश (कल्याणी)

चालुक्य वंश (कल्याणी) कल्याणी के चालुक्य तैलप द्वितीय ने 973 ईस्वी में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली। तैलप द्वितीय की राजधानी मान्यखेत थी। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य छठा था। भारत में विक्रमादित्य राजाओं की संख्या 14 है। मिताक्षरा (हिंदू विधि ग्रंथ याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्याख्या) नामक ग्रंथ की रचना महान विधिवेत्ता विज्ञान ईश्वर ने की थी। विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी इसमें विक्रमादित्य छठा के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।

चालुक्य वंश (वातापी)

चालुक्य वंश (वातापी) जयसिंह ने वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना की थी। इसकी राजधानी वातापी (बीजापुर) के निकट थी। इस वंश के प्रमुख शासक थे- पुलकेशिन प्रथम, कीर्ति वर्मन, पुलकेशिन द्वितीय, विक्रमादित्य, विनियादित्य एवं विजयादित्य। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन द्वितीय था। पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वर की उपाधि धारण की थी। ऐहोल अभिलेख का संबंध पुलकेशिन द्वितीय से है तथा इसके रचनाकार रविकृति है। जिनेंद्र का मेगुती मंदिर पुलकेशिन द्वितीय ने बनवाया था। वातापी का निर्माणकर्ता कीर्ति वर्मन को माना जाता है। इस वंश का अंतिम राजा कीर्ति वर्मन द्वितीय था। इसे इसके सामंत दंतिदुर्ग में परास्त कर एक नए वंश (राष्ट्रकूट वंश) की स्थापना की।

चालुक्य वंश (वेंगी)

चालुक्य वंश (वेंगी) वेंगी के चालुक्य वंश का संस्थापक विष्णु वर्धन था। इसकी राजधानी वेंगी, (आंध्र प्रदेश) में थी। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा विजयआदित्य तृतीय था, जिसका सेनापति पांडुरंग था। इस वंश के प्रमुख शासक थे- जयसिंह प्रथम, इंद्रवर्धन, विष्णुवर्धन द्वितीय, जयसिंह द्वितीय एवं विष्णुवर्धन तृतीय।

चोल वंश

चोल वंश 9 वी शताब्दी में चोल वंश पल्लवो के ध्वंसावशेषो पर स्थापित हुआ। चोल वंश के संस्थापक विजयालय (850 से 870 ई०) था। चोलो का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम स्थापित किया। पल्लवों पर विजय पाने के उपरांत आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की। राजराज प्रथम शैव धर्म का अनुयाई था। राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर का शिव मंदिर बनवाया जिसे बृहदेश्वर मंदिर से भी जाना जाता है। चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेंद्र प्रथम के शासनकाल में हुआ। चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र तृतीय था। विक्रम चोल, आभाव एवं अकाल से ग्रस्त गरीब जनता से राजस्व वसूल कर चिदंबरम् मंदिर का विस्तार करवा रहा था। कोलतुंग द्वितीय ने चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविंद राज (विष्णु) की मूर्ति को समुद्र में फेकवा दिया। कालांतर में वैष्णो आचार्य  रामानुजाचार्य ने उक्त मूर्ति का पुनद्धार किया और उसे तिरुपति के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित किया। संपूर्ण चोल साम्राज्य 6 प्रांतों में विभक्त था।  प्रांत को मंडलम कहा जाता था ।मंडलम को कोट्टम, कोटृम नाडु में एवं नाडु कई कुर्रमों में विभक्त था। स्थानीय स्वशासन...

दक्षिण भारत के अन्य छोटे राजवंश

यादव वंश देवगिरि के यादव वंश की स्थापना भिल्लम पंचम ने कि उसकी राजधानी देवगिरी थी। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा सिंहण (1210 से 1246 ई०) था। इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र था जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर के सामने आत्मसमर्पण किया। होयसल वंश द्वारसमुद्र के होयसल वंश की स्थापना विष्णुवर्धन ने की थी। होयसल वंश यादव वंश की एक शाखा थी। बेलूर में चेन्नकेशव मंदिर का निर्माण विष्णुवर्धन ने 1117 ईस्वी में किया था। होयसल वंश का अंतिम शासक वीर बल्लाल तृतीय जिसे मलिक काफूर ने हराया था। कदंब वंश कदंब वंश की स्थापना मयूर शर्मन ने की थी। कदंब वंश की राजधानी  वनवासी था। गंग वंश गंग वंश का संस्थापक बज्रहस्त पंचम था। अभिलेखों के अनुसार गंग वंश के प्रथम शासक कोंकणी वर्मा था। गंगो की प्रारंभिक राजधानी कुवलाल (कोलर) थी जो बाद में तलकाड हो गई। दत्तक सूत्र पर टीका लिखने वाला गंग शासक माधव प्रथम था। काकतीय वंश काकतीय वंश का संस्थापक बीटा प्रथम था। जिसने नलगोंडा (हैदराबाद) में एक छोटे से राज्य का गठन किया जिसकी राजधानी अंमकोड थी। इस वंश का सबसे ...

पाल वंश

पाल वंश पाल वंश का संस्थापक गोपाल 750 ईसवी था। इस वंश की राजधानी मुंगेर थी। गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयाई था इसने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। पाल वंश का सबसे महान शासक धर्मपाल था जिसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। ओदंतपुरी (बिहार) के प्रसिद्ध बौद्ध मठ का निर्माण देवपाल ने कराया था। गौड़ी रीति नामक साहित्यिक विद्या का विकास पाल शासकों के समय में हुआ।

कश्मीर के राजवंश

कश्मीर के राजवंश कश्मीर पर शासन करने वाले शासक वंश काल क्रम में इस प्रकार थे- कार्कोट वंश>उत्पल वंश>लोहार वंश। सातवीं शताब्दी में दुर्लभ वर्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी। प्रतापपुर नगर की स्थापना दुर्लभक ने की थी। कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली राजा ललितादत्य मुक्तापीड था। कश्मीर का मार्तंड मंदिर का निर्माण ललितादित्य के द्वारा करवाया गया था। कार्कोट वंश के बाद कश्मीर पर उत्पल वंश का शासन हुआ इस वंश का संस्थापक अवंति वर्मन था। अवंतीपुर नामक नगर की स्थापना अवंति वर्मन ने की थी। उत्पल वंश के बाद कश्मीर पर लोहार वंश का शासन हुआ। लोहार वंश का संस्थापक संग्राम राज था। लोहार वंश का शासक हर्ष- विद्वान, कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था। कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था। जयसिंह, लोहार वंश का अंतिम शासक था जिसने 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी तक शासन किया। जय सिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है। राजतरंगिणी - भारत की पहली इतिहास की पुस्तक है।

कामरूप का वर्मन वंश

कामरूप का वर्मन वंश चौथी शताब्दी के मध्य काम रूप में वर्मन वंश का उदय हुआ इस वंश की प्रतिष्ठा का संस्थापक पुष्य वर्मन था। इसकी राजधानी प्रयाग ज्योतिष नामक स्थान पर थी। कालांतर में कामरुप पाल साम्राज्य का एक अंग बन गया।

सेन वंश

सेन वंश सेन वंश की स्थापना सामंत सेन ने राढ़ में की थी। इसकी राजधानी नदिया लखनौती थी। सेन वंश के प्रमुख शासक विजय सेन, बल्लाल सेन एवम लक्ष्मण सेन थे। सेन वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक विजयसेन था, जो शैव धर्म का अनुयाई था। दान सागर एवं अद्भुत सागर नामक ग्रंथ की रचना सेन शासक बल्लाल सेन ने की थी। लक्ष्मण सेन की राज्यसभा में गीत गोविंद के लेखक जय देव, पवनदूत के लेखक धोई एवं ब्राह्मण सर्वस्य के लेखक हलायुध रहते थे। हलायुद्ध लक्ष्मण सेन का प्रधान न्यायाधीश एवं मुख्यमंत्री था। सेन राजवंश प्रथम राजवंश था जिसने अपना अभिलेख सर्वप्रथम हिंदी में उत्कीर्ण करवाया। विजय सिंह ने देव पाड़ा में प्रद्युम्नेश्वर मंदिर (शिव की विशाल मंदिर) की स्थापना की। लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिंदू शासक था।

गुर्जर प्रतिहार वंश

राजपूत राजवंशो की उत्त्पत्ति गुर्जर प्रतिहार वंश इस वंश का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था। नागभट्ट प्रथम मालवा का शासक था। नागभट्ट द्वितीय को राष्ट्रकूट वंश के सम्राट गोविंद तृतीय ने हराया था। प्रतिहार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा मिहिरभोज था। मिहिर भज ने अपनी राजधानी क़न्नौज में बनाई थी वह विष्णु भक्त था उसने विष्णु के सम्मान मैं आदि वाराह की उपाधि ग्रहण की। राजशेखर प्रतिहार शासक महेंद्र पाल के दरबार में रहते थे। इस वंश का अंतिम राजा यशपाल (1036 ईस्वी) था। दिल्ली नगर की स्थापना तोमर नरेश अनंग पाल ने ग्यारहवीं सदी के मध्य में की।

गहड़वाल (राठौड़) राजवंश

गहड़वाल (राठौड़) राजवंश गहड़वाल वंश का संस्थापक चंद्रदेव था इसकी राजधानी वाराणसी काशी थी। किस वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा गोविंदचंद्र था। गोविंद चंद्र का मंत्री लक्ष्मीधर शास्त्रों का प्रखंड पंडित था जिसने कृत्यकल्पतरु नामक ग्रंथ लिखा था। पृथ्वीराज तृतीय ने स्वयंवर से जयचंद की पुत्री संयोगिता का अपहरण कर लिया था। इस वंश का अंतिम शासक जयचंद था । जिसे गौरी ने 1194 ईस्वी के चंदावर युद्ध में मार डाला।

चाहमान या चौहान वंश

चाहमान या चौहान वंश चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव था इस वर्ष की प्रारंभिक राजधानी अहिच्छत्र थी बाद में अजयराज द्वितीय ने अजमेर नगर की स्थापना की ओर उसे राजधानी बनाया। इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक अर्णोराज के पुत्र विग्रहराज चतुर्थ विसलदेव 1153 से 1163 ईस्वी हुआ। हरिकेली नामक संस्कृत नाटक के रचयिता विग्रहराज चतुर्थ था। सोमदेव, विग्रहराज चतुर्थ के राजकवि थे उन्होंने ललित विग्रहराज नामक नाटक लिखा।  अड़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद शुरू में विग्रहराज चतुर्थ द्वारा निर्मित एक विद्यालय था। पृथ्वीराज तृतीय इस वंश का अंतिम शासक था। चंदवरदाई पृथ्वीराज तृतीय का राजकवि था, जिसकी रचना पृथ्वीराज रासो है। रणथंभौर के जैन मंदिर का शिखर पृथ्वीराज तृतीय ने बनवाया था। तराइन का प्रथम युद्ध 1191 ईस्वी में हुआ जिसमें पृथ्वीराज तृतीय की विजय एवं मोहम्मद गौरी की हार हुई। तराइन का द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में हुआ जिसमें मोहम्मद गौरी की विजय एवं पृथ्वीराज तृतीय की हार हुई।

परमार वंश

परमार वंश परमार वंश का संस्थापक उपेंद्रराज था। इसकी राजधानी धारा नगरी थी । (प्राचीन राजधानी उज्जैन) परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था। राजा भोज ने भोपाल के दक्षिण में भोजपुर नामक झील का निर्माण करवाया। नैषधीयचरित के रचनाकार श्रीहर्ष थे। नवसाहसाड्ंग चरित्र के रचयिता पद्मगुप्त, दशरूपक के रचयिता धनंजय, धनिक, हलायुध एवं अमितगति जैसे विद्वान वाक्यपति मुंज के दरबार में रहते थे। कविराज की उपाधि से विभूषित शासक था- राजा भोज। भोज ने अपनी राजधानी में सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया था। भोजने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया था। परमार वंश के बाद तोमर वंश का उसके बाद चाहमान वंश का और अंततः 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नसरत खां और उलूग खां ने मालवा पर अधिकार कर लिया।

चंदेल वंश

चंदेल वंश प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुंदेलखंड की भूमि पर चंदेल वंश का स्वतंत्र राजनीतिक इतिहास प्रारंभ हुआ। बुंदेलखंड का प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है। चंदेल वंश का संस्थापक नन्नुक था।(831ई०) इसकी राजधानी खजुराहो थी प्रारंभ में इसकी राजधानी (कलिंजर) महोबा थी। चंदेल वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन था। यशोवर्मन ने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देवपाल को हराया तथा उससे एक विष्णु की प्रतिमा प्राप्त कि, जिससे उसने खजुराहो के विष्णु मंदिर में स्थापित की। धंग ने जिन्नात विश्वनाथ एवं वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। चंदेल शासक विद्याधर ने कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या कर दी क्योंकि उसने महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण का सामना किए बिना ही आत्मसमर्पण कर दिया था। विद्याधर ही अकेला ऐसा भारतीय नरेश था जिसने महमूद गजनी की महत्वकांक्षाओं का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया। चंदेल शासक कीर्ति वर्मन की राज्यसभा में रहने वाले कृष्ण मिश्र ने प्रबोध चंद्रोदय की रचना की थी। कीर्ति वर्मन ने महोबा के समीप कीर्ति सागर नामक जलाशय का निर्माण किया। आल्हा- उदल नामक दो से...

सोलंकी वंश अथवा गुजरात के चालुक्य शासक

सोलंकी वंश अथवा गुजरात के चालुक्य शासक सोलंकी वंश का संस्थापक मूलराज प्रथम था। मूलराज प्रथम शैव धर्म का अनुयाई था। भीम प्रथम के शासनकाल में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। भीम प्रथम के सामंत विमल ने आबू पर्वत पर दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मंदिर बनवाया। सोलंकी वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक जयसिंह सिद्धराज था। प्रसिद्ध जैन विद्वान हेमचंद, जयसिंह सिद्धराज के दरबार में था। माउंट आबू पर्वत (राजस्थान) पर एक मंडप बनाकर जयसिंह सिद्धराज ने अपने सातों पूर्वजों की गजारोही मूर्तियों की स्थापना की। मोढेरा के सूर्य मंदिर का निर्माण सोलंकी राजाओं के शासनकाल में हुआ। सिद्धपुर में रुद्र महाकाल के मंदिर का निर्माण जयसिंह सिद्धराज ने किया था। सोलंकी शासक कुमारपाल जैन-मतानुयाई था वह जैन धर्म के अंतिम राजकीय प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध है। सोलंकी वंश का अंतिम शासक भीम द्वितीय था। भीम द्वितीय के एक सामान्त लवण प्रसाद ने गुजरात में बघेल वंश की स्थापना की थी। बघेल वंश का कर्ण द्वितीय गुजरात का अंतिम हिंदू शासक था इसने अलाउद्दीन खिलजी की सेनाओं का मुकाबला किया था।

कलचुरी चेदि राजवंश

कलचुरी चेदि राजवंश कलचुरी वंश का संस्थापक कोक्कल था। इसकी राजधानी त्रिपुरी थी। कलचुरी वंश का एक शक्तिशाली शासक गांगेय देव था जिसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की । पूर्व मध्यकाल में स्वर्ण सिक्कों के विलुप्त हो जाने के पश्चात उन्होंने सर्वप्रथम से प्रारंभ करवाया। कलचुरी वंश का सबसे महान शासक कर्ण देव था। कर्ण देव ने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकालिंगाधिपति की उपाधि धारण की। प्रसिद्ध कवि राजशेखर कलचुरी दरबार में ही रहते थे।

सिसोदिया वंश

सिसोदिया वंश सिसोदिया वंश के शासक अपने को सूर्यवंशी कहते थे। सिसोदिया वंश के शासक मेवाड़ पर शासन करते थे मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी। अपनी विजयों के उपलक्ष्य में विजय स्तंभ का निर्माण राणा कुंभा ने चित्तौड़ में करवाया था। खतौली का युद्ध 1518 ईस्वी में राणा सांगा एवं इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था।